Saturday, April 2, 2016

आज दिमाग की दही करने का दिल कर रहा
क्या सोचते होंगे वे लोग जो अच्छी भली सेहत और सुंदर शरीर को नष्ट करने का निर्णय अनायास ली ले लेते होंगे। एक क्षण में अपनी जीवन लीला को समाप्त करने की हिम्मत जुटा लेते हैं। हमने सुना है लोगों को यह कहते कि आत्महत्या करने वाला डरपोक, कायर होता है। अगर यह तर्क स्वीकार कर लिया जाए तो भी मन नहीं मानता। तर्क सोच से निकलते हैं। सोच समाज में रहते हुए बनते हैं। कई घटनाएं जो हम देख चुके होते हैं, अनुभव कर चुके होते हैं और जिनका सरोकार हमारे जीवन से होता है। उन्हीं अनुभवों के आधार पर हम अपने तर्क देते हैं। चंद मिनटों के लिए यदि हम यह सोच लें। प्रत्युशा ने आत्महत्या करने की सोची होगी। फिर उसके मन में एक ख्याल तो जरूर आया होगा कि रास्ता कौन सा अपनाया जाए। विकल्प भी कई होंगे। सबके अपने जोखिम भी होंगे। तो क्या उनमें से किसी एक को चुनने से पहले सबसे आसान रास्ता अपनाने का ख्याल किया होगा। प्रत्युशा की जगह मैंने खुद को रखा। आत्महत्या के तरीकों पर आत्मीयता से विचार किया। सभी तरीके हमें बड़े कष्टदायक ही लगे। यहीं पर ख्याल आया कि क्या किसी एक रास्ते को चुनने के लिए उसने हिम्मत जुटाई होगी। और यदि उसने हिम्मत जुटा ही लिया तो फिर कायरता वाला तर्क कैसे स्वीकार किया जाए।
अब हमने सोचा कि क्यों भौतिकवादी दुनिया के अस्तित्व पर प्रश्न किया जाए। दुनिया क्या है? एक ऐसी जगह जहां अनगिनत देश हैं, उन देशों में लाखों-करोड़ो लोग बसे हैं और यह लोग एक ऐसी दौड़ में भाग रहे हैं जहां यह अपने प्रतियोगी से आगे ही रहना चाहते हैं। इस दुनिया में तरह-तरह के लोग रहते हैं, रोज नन्हीं किलकारियों के साथ कुछ दुनिया के नए मेहमान बन कर आते हैं तो कुछ एक दिन अलविदा कह कर चले जाते हैं। यह हमारे संसार का नियम हैा इन नियमों को मान ले तो क्या आत्महत्या करने वाले लोग इस तात्विक ज्ञान से मुंह मोड़ना चाहते हैं। जो आया है उसको एक दिन जाना ही है। इसमें कोई दो राय नहीं कि आने वाले के आने पर जितनी खुशी होती है उससे कहीं ज्यादा दु:ख किसी के चले जाने पर होता है। लेकिन जो जाता है उसका क्या? क्या उसके बारे में कभी किसी ने सोचा है? जिंदगी का आखिरी पड़ाव पूरा करते समय वह क्या महसूस करता है क्या आप जानते हैं? मैंने अकसर यह सुना है कि मौत को अपने सामने खड़ा देख लोग बेहद घबरा जाते हैं। एक छोटा बच्चा जब पहली बार किसी डरावने जीव को देख अपनी मां के आंचल में छिपने की कोशिश करता है, ठीक इसी तरह से इंसान भी मौत को देख बेचैन हो जाता है। लेकिन फिर भी मौत को नजरअंदाज़ भी तो नहीं किया जा सकता। यह सत्य है कि मृत्यु से डर लगता है, परंतु उनका क्या जो खुद मौत को गले लगाते हैं? वे लोग जो खुद हिम्मत जुटा कर अपनी मौत की तारीख तय करते हैं। जीवन का आखिरी चरण कब और किस दिन होगा, वह खुद इसका फैसला करते हैं? कौन हैं ये लोग? क्या इन्हें अपनी जिंदगी से प्यार नहीं? ये वो लोग हैं जो किसी ना किसी कारण से मरना चाहते हैं। जिनके लिए जीवन से ज्यादा सुखमय शायद मौत है। लेकिन निडर होकर मरने के बाद ये कहां जाते हैं? हिन्दू मान्यता के अनुसार इंसान के मरने के बाद यमराज उसे यमलोक लेकर जाते हैं। वहां उसके लिए दो द्वार मौजूद हैं - स्वर्ग और नर्क। उसके कर्मों का हिसाब लगाने के बाद ही यह निश्चित किया जाता है कि उसका आने वाला भाग्य स्वर्ग (जिसे अच्छे कर्म करने वाला भोगता है) होगा या नर्क (जो बुरे लोगों के लिए है) होगा। तो क्या आत्महत्या (सुसाइड) करने वालों के लिए भी यही नियम लागू होता है? हिन्दू मान्यता के अनुसार इंसान की मृत्यु के बाद उसकी आत्मा को स्वर्ग और नर्क में जगह दी जाती है। ग्रंथों में विस्तार रूप से स्वर्ग एवं नर्क की तस्वीर भी परिभाषित की गई है। यह दोनों स्थान किस तरह के दिखते हैं, इनमें कौन रहता है और किस तरह से यहां आने वाले लोगों के साथ व्यवहार किया जाता है, इसका पूरा उल्लेख दिया गया है। न जाने कैसे-कैसे तर्क मन में आ रहे हैं। इसके पहले की मन में निराशा घर करें, हम खुद को इन तर्कों-कुतर्कों के दरिया से बाहर निकाल लें।
 

Sunday, June 7, 2009

संगमा का माफीनामा

अभी कल ही की बात है .सुब कुछ अपना सा लगता था लेकिन आज न जाने क्यों सुब कुछ बदल गया है । कल तक जो लोग देशी और विदेशी के नाम पर भोडा नाच कर रहे थे उनका मन अब बदल गया है। इसलिए नही की अब सोनिया जी भारतीय मूल की हो गई है बल्कि इसलिए क्युकी अब वो गैरो पर भी रहम दिखाते हुए मंत्री मंडल में उन्हें भी जगह दे रही है जो कभी उनके धुर विरोधी रहे है। अब देखना है की अवसर वादियो की यह दोस्ती देश की जनता के साथ कितना वफ़ा निभा पाती है।